हिंदू धर्म के कई मंदिरों ऐसे हैं. जहां रति क्रिया में लीन मूर्तियों को दर्शाया गया है. सोशल मीडिया पर एक यूजर ने ट्वीट में लिखा था, ‘ की अब मंदिरों में सेक्स दिखाना बाकी रह गया, सोते रहो हिंदुओ !!’ इस यूजर ने यह ट्वीट विक्रम सेठ की किताब पर बनी नेटफ्लिक्स सीरीज ‘अ सूटेबल बॉय’ पर चल रहे विवाद के दौरान किया था.हिंदुओ द्वारा नेटफ्लिक्स को boycott करने की माँग की जा रही है ट्विटर पर #BoycottNetflix हैशटैग भी ट्रेंड करवाए जा रहे है कुछ लोगों का आरोप है कि सीरीज के एक सीन में लड़का मंदिर प्रांगण में लड़की को चूम रहा है. बैकग्राउंड में आरती बज रही है. ये सहन नहीं किया जा सकता. इस ट्वीट के जवाब में कुछ लोगों ने उन हिंदू मंदिरों की तस्वीरें डाली, जहां यौन क्रीड़ारत नग्न मूर्तियां हैं. आइए जानते हैं, ऐसे ही मंदिरों के बारे में,
पहले उन मंदिरों की बात, जहां रतिक्रीड़ा में रत मूर्तियां हैं
भारत में कामक्रीड़ा से जुड़ी मूर्तियों वाले बहुत मंदिर हैं. कुछ मंदिर तो दुनियाभर में पॉपुलर हैं, और कुछ मंदिरो को सिर्फ लोकल लोग ही जानते हैं. भारत के प्रमुख ऐसे 5 मंदिर हैं, जो अपनी खास कामुक मूर्तिकला के कारण जाने जाते है
1 खजुराहो मंदिर प्रांगण (मध्यप्रदेश)
जब भी कामक्रीड़ा में रत मूर्तियों की बात की जाती है तो सबसे पहले खजुराहो के मंदिरों का ही जिक्र आता है. इस मंदिर के प्रांगण में लगभग 85 मंदिर बनवाए गए थे. इनमें से 26 तो अब भी अच्छे हाल में हैं. यहां हिंदू धर्म के अलावा जैन तीर्थंकरों के भी मशहूर मंदिर हैं. मंदिर लगभग 20 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैले हुए हैं. यहाँ पर अनेक मूर्तियाँ है लेकिन सिर्फ 10 फीसदी ही ऐसी हैं जिनमें कामक्रीड़ा का चित्रण है. इसके प्रांगण में अनेक महत्वपूर्ण मंदिर भी हैं- , चौसठ योगिनी का मंदिर,कंदरिया महादेव मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, मतंगेश्वर मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर आदि.
कहां है – छतरपुर (मध्यप्रदेश) जिले से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर स्थित है
कब बनाए गए – सन 885 से लेकर 1125 तक अलग-अलग राजाओं के द्वारा बनवाया गया .
किसके द्वारा बनवाया गया – इन मंदिरों को चंदेल वंश के शासकों ने बनवाया. मंदिरों को बनवाने में राजा यशोवर्मन और धंगदेव का नाम सबसे प्रमुख है. ज्यादातर मंदिर इन शासकों ने ही बनवाए.
पूजा होती है? –ये मंदिर आम लोगों की पूजा के लिए नहीं खुला है.
खजुराहो के मंदिरों में बने इरोटिक स्कल्प्चर दुनिया भर से लोगों को आकर्षित करते हैं.
2 भंड देव का मंदिर (राजस्थान)
इस मंदिर को हूबहू खजुराहो मंदिर की शैली में ही बनाया गया है. इस पर उकेरी गई कामक्रीड़ा में रत मूर्तियां भी लगभग वैसी ही दिखती हैं. इस वजह से इसे छोटा खजुराहो भी कहा जाता है. मुख्य शिव मंदिर के अलावा 750 सीढ़ियां चढ़ने पर देवी अन्नपूर्णा और देवी कसनई के मंदिर भी बने हुए है जो भी इसका हिस्सा हैं.
कहां स्थित है – ये मंदिर राजस्थान के बारां जिले में पड़ता है. कोटा से इसकी दूरी तकरीबन 70 किलोमीटर और जयपुर से 250 किलोमीटर पड़ती है.
कब बना – जब मध्यप्रदेश में खजुराहो मंदिरों का निर्माण हो रहा था, उस दौरान यह मंदिर भी बनाया जा रहा था. बात 10वीं शताब्दी की है.
मंदिर किसने बनवाया –यह मंदिर तांत्रिक परंपरा से जुड़ा नागर शैली में बना है. इसे नाग वंश के शासक मलय वर्मा ने अपने शत्रुओं पर विजय पाने के बाद भगवान शिव के प्रति श्रद्धा दिखाने के लिए बनवाया था.
पूजा होती है? – मंदिर में आम लोग पूजा कर सकते हैं. यहां पर हर साल मेला भी लगता है.जिसमे बहुत लोग शामिल होते है
राजस्थान में बना भंड देव का मंदिर खजुराहो की तरह कामक्रिया में रत मूर्तियों की वजह से छोटा खजुराहो कहलाता है. 3 सूर्य मंदिर, कोणार्क (उड़ीसा)
जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है, इसे भगवान सूर्य को समर्पित करते हुए बनवाया गया है. यहीं पर सूर्य भगवान का 100 फुट ऊंचा रथ है. इसे स्थापत्य कला के मामले में दुनियाभर में बेहतरीन नमूने के तौर पर भी देखा जाता है. मंदिर की दीवारों पर कामक्रीड़ा में रत मूर्तियों भी है इसके अलावा जिस तरह से सूर्य के रथ के 24 पहियों को बनाया गया है, वह भी खास है. जब यह मंदिर बना था तो इसके प्रांगण में कई मंदिर बनाए गए थे. लेकिन अब सिर्फ एक मंदिर ही बचा है.
कहां है – कोणार्क में
कब बना – इसका निर्माण 1230 में हुआ था.
किसने बनवाया – कोणार्क का सूर्य मंदिरनरसिंह देव प्रथम ने 1238 से 1250 के बीच करवाया था.
पूजा होती है? –आम लोग यहाँ नहीं जा सकते
कोणार्क का सूर्य मंदिर अपनी भव्यता और रति मूर्तिकला की वजह से लोगों में काफी पॉपुलर है.
4 मार्कंडा मंदिर,(महाराष्ट्र)
भगवान शिव के इस मंदिर में उपस्थित कामक्रीड़ाओं की मूर्तियां इसे महत्वपूर्ण बनाती हैं.इसके कारन ही मंदिर को विदर्भ का खजुराहो कहा जाता है. बाणगंगा नदी के किनारे बना यह मंदिर प्रांगण 40 एकड़ भूमि में फैला है. प्रांगण में उपस्थित ज्यादातर मंदिर क्षतिग्रस्त हो चुके है यहाँ के आसपास के लोगों का यह भी मानना है की इन मंदिरों का निर्माण एक रात में ही हो गया था.
कहां है – महाराष्ट्र के गणचिरौली जिले में
कब बना – इसे 8वीं से 12 शताब्दी के बीच बनाया गया
किसने बनवाया –राष्ट्रकूट वंश के राजाओं ने बनवाया है.
पूजा होती है? – मंदिर पूजा करने योग्य नहीं है
मार्कंडा महादेव मंदिर का काफी हिस्सा गिर गया है लेकिन फिर भी इसमें बहुत सी मूर्तियां हैं जो इसे खास बनाती हैं. 5भोरमदेव मंदिर, छत्तीसगढ़ में
भगवान शिव का यह मंदिर अपनी महीन नक्काशी के लिए दुनियाभर में प्रसिद है. इस मंदिर में बनी कामक्रीड़ा की मूर्तियां बेहतरीन स्थिति में हैं. इन्हें देखने के लिए हर साल हजारों लोग पहुंचते हैं. यहां पर कुल 4 मंदिर हैं. इसमें सबसे पुराना मंदिर ईटों से बनाया गया है बाद के सभी मंदिर पत्थरों से बनाए गए हैं. इस इलाके में रहने वाले गोंड जनजाति के लोग भगवान शिव को भोरमदेव के नाम से पूजते हैं. इसी वजह से मंदिर का नाम भोरमदेव मंदिर पड़ा.
कहां है– छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में
कब बने – 7 वीं शताब्दी से 12 वीं शताब्दी के बीच.
किसने बनवाया – मंदिर को फणिनाग वंश के शासक लक्ष्मण देव राय और गोपाल देव ने बनवाया.
पूजा होती है? –यह मंदिर पूजा पाठ के लिए खुला रहता है.
स्थानीय जनजाति में भगवान शिव को भोरम देव के नाम से पूजा जाता है. इसी वजह से ये शिव मंदिर भोरमदेव का मंदिर कहलाया.
जानिए अन्य मंदिरो के बारे में जिनमें कामक्रीड़ा को दीवारों पर खूबसूरती से उकेरा गया है.
1 राजस्थान में स्थित रनकपुर जैन मंदिर भी तांत्रिक पूजापाठ और कामक्रीड़ा में रत मूर्तियों के लिए जाना जाता है यह मंदिर 1437 में बना और इसका निर्माण एक स्थानीय व्यापारी दरनाशाह ने करवाया था.
2 कर्नाटक राज्य के बेल्लारी जिले में स्थित हंपी नामक स्थान पर बना विरूपाक्ष मंदिर भी अपनी इरोटिक मूर्तियों की वजह से प्रसिद्ध है वर्ल्ड हेरिटेज साइट का हिस्सा ये मंदिर 9वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच इसका निर्माण हुआ था
3 राजस्थान राज्य के उदयपुर जिले में बना जगदीश मंदिर भी अपनी मूर्तियों की वजह से काफी मशहूर है. भगवान विष्णु के इस खूबसूरत तीन मंजिला मंदिर को जगन्नाथ मंदिर भी कहा जाता है
जानिए आखिर क्यों बनवाए गए ऐसे मंदिर?
देश भर में अनेक मंदिरों में बार-बार कामक्रीड़ा से जुड़ी मूर्तियों के दर्शन होते हैं. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर ऐसा क्यों है? इन मूर्तियों का निर्माण क्यों करवाया गया है ?
मशहूर मिथॉलजिस्ट देवदत्त पटनायक जी के अनुसार इन मंदिर को बनाने का खास शिल्पशास्त्र है. मंदिरों में दांपत्य या श्रंगार की मूर्तियां हमेशा दिखती हैं. हर मंदिर में स्री-पुरुष की मूर्तियां आसानी से देखी जा सकती हैं.लेकिन ये जरूरी नहीं हैं कि मूर्तियां इरोटिक ही हों. मूर्तियों में हमेशा ही प्रेम की बात होती है जैसे एक झूले पर या नौका पर प्रेमी-प्रेमिका होंगे.या एक-दूसरे की तरफ खास तरीके से देखते हुए मूर्तियां होंगी. इसके अलावा रतिक्रीड़ा की मूर्तियां भी हैं, लेकिन बाकी सबके मुकाबले हमेशा ये कम ही दिखेंगी. इसके पीछे का कारण यही है कि उसका जीवन में स्थान जरूर है, लेकिन सीमित मात्रा में. बाकी सभी चीजों का भी संतुलन बनाए रखना है.
लेकिन आजकल लोग ये सोचते हैं कि संत-महात्मा भी कामवासना में लिप्त थे लेकिन प्राचीन भारत में ऐसा नहीं सोचा जाता था. हिंदू परंपरा में भोग-विलास भी बड़ी चीज होती थी. हिंदू परंपरा में धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष सभी को बराबर महत्व दिया जाता है. जहां तक खजुराहो की बात है तो वहां पर बहुत कम मूर्तियां हैं, जो इरोटिक हैं. हिंदू धर्म में मंदिर को ब्रह्मांड के छोटे स्वरूप की तरह से देखा जाता है. इसमें सबकुछ समेटा जाता है. यह सामान्य जीवन का हिस्सा है.
समाजशास्त्री आशीष नंदी के अनुसार
कामक्रीड़ा को सिर्फ खजुराहो, मंदिरों या सिर्फ काम सूत्र से जोड़कर देखना पूरी तरह से गलत है. उनके अनुसार कामुकता हमेशा से हिंदू ग्रंथों और चित्रकला का हिस्सा रही है. कृष्ण और उनके आसपास गोपियों को लेकर जितनी भी पौराणिक कथाएं हैं, उन्हें भी खास नजरिए से ही लिखा गया है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी में कार्यरत इतिहास के प्रोफेसर बीपी साहू कहते हैं की मंदिरों में इस तरह की मूर्तियों को लेकर 2 तरह के मत मिलते हैं. एक मत के अनुसार, जिस काल (9वीं से 12वीं शताब्दी) में ये मंदिर बन रहे थे, उस वक्त सामन्तवाद चरम पर था. ज्यादातर छोटे-बड़े राजा भोग-विलास में ही लगे थे. ऐसे में उस रहन-सहन का चित्रण ही मंदिरों की दीवारों पर दिखाया गया है
दूसरा मत के अनुसार मंदिर की दीवारों पर काम क्रीड़ाओं को दिखाने का कारण इससे ऊपर उठने की तरफ प्रेरित करने को लेकर भी था. हिंदू धर्म में सभी को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष से ऊपर उठने के लिए कहा गया है. इन मूर्तियों से भी यही संदेश लोगो को दिया जाता है बताया जाता है कि इनसे ऊपर उठकर ही परमसत्य को पाया जा सकता है.
देशभर में फैले मंदिरों में प्रेम-विरह, रति और भोग की मूर्तियां और तस्वीरें मिलती रही हैं. ये सभ्यता का एक हिस्सा रही हैं. इन्हें हिंदू राजाओं ने बनवाया और संरक्षित किया है. लेकिन जब भारत में ब्रिटिश शासन आया तो इन मंदिरों का ख्याल नहीं रखा लेकिन 19वीं शताब्दी तक आते-आते उन्हें यह बात समझ में आने लगी कि ये खास संस्कृति का हिस्सा हैं. संरक्षण का काम तब से शुरू हुआ, जो अब भी जारी है.
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